शनिवार, 28 जून 2008

श्री मानस रस मंजरी (४)

[ गतांक से आगे ]
रघुवंशी सूर्यवंश है । दशरथ जी सूर्यवंशी है ,सूर्यवंश में अवतार लिये हैं । सूर्यनारायण में बारह कला हैं
और तीन कला चन्द्र्मा में है , एक कला अग्नि में है । श्री रामचरित मानस में आया है -
"वन्दऊ नाम राम रघुवर को ,हेतु कृशानु भानु हिमकर को ।"
श्री दशरथ जी सूर्य भगवान को कहते हैं कि, हे सूर्यदेव आप तीनों लोकों का अंधकार दूर करते हो,आपके कुल को कलंक का टीका लगाने वाला व्यर्थ ही श्रीराम का पिता कहलाया । मुझे एकबार क्षमा कर दें।जो में आपसे याचना करना चाहता हुँ वह आशीर्वाद मुझे देने की दया करें,कि मैं किसी को अपना काला मुँह न दिखा सकुँ । क्या माँगते है कि-
"उदय करहु जनि रवि रघुकुल गुर , अवध विलोकि सूल होयहि उर ।
ह्रदय मनाव भोर जनि होई , रामहि जाय कहे जनि कोई ॥ "
हे ,भास्कर आप भारत में उदय ही न हों ,आप अयोध्या में उदय ही न हों !श्री दशरथ जी चाहते है अवध में हमेशा रात ही रहे । जिससे मेरा राम जंगल को तपस्वी बनकर न जाये । नृप कहते हैं कि मुझे दिन नहीं चाहिये -
"उदय करहु जनि रवि रघुकुल गुर , अवध विलोकि सूल होयहि उर "
मुझे प्रकाश नहीं चाहिये , मुझे तो मेरा राम ही चाहिये । मेरी अयोध्यापुरी को,मेरे परिवार को , मेरी प्रजा को राम ही चाहिये , सबेरा नहीं । श्री दशरथ जी को , अयोध्यावासियों को, माताओं को राम ही सूर्य है । पूज्यपाद गोस्वामी जी भी श्रीराम राघव को सूर्य लिखते हैं-
दोहा :- "उदित उदय गिरि मंच पर ,रघुवर बाल पतंग ।
बिकसे संत सरोज सब ,हरषे लोचन भृंग ॥"
जिस समय जनक जी के यहाँ जिस मंच पर भगवान सदाशिव का धनुष भंग करने को गुरु जी की आज्ञा से पहुँचे तो गोस्वामी जी ने श्रीराम को बाल पतंग लिख दिया । उदय के सूर्य ज्यादा तेज नहीं होते, कोई भी बिना चकाचौंध के बालसूर्य को देख सकते हैं । वही सूर्य जब तरुण अवस्था में बारह बजे पर आते हैं,तो देखना कठिन हो जाता है । श्रीराम यहाँ जनकपुरी में ,अयोध्यापुरी में बालसूर्य हैं , जबकि परशुरामजी बारह बजे के सूर्य हैं । देखिये जिस समय शिव धनुष भंग होता है तो आवाज को सुनकर श्री परशुरामजी आते हैं । यहाँ मानसकार लिखते हैं-
"तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा, आयहु भृगुकुल कमल पतंगा ॥"
श्री परशुरामजी को पतंगा , श्रीरामजी को बाल पतंग । आईये, अपने प्रसंग पर - श्री दशरथ जी सोचते हैं कि ,मेरे कुल को प्रकाशित करने वाले श्रीराम बाल सूर्य के समान अयोध्या में रहे तो हमको रात भी अच्छी है क्योंकि ,-
"एहि जग जामिनी जागहि जोगी, परमार्थी प्रपंच वियोगी ॥"
राजा चाहते हैं कि रात रहे ,श्रीहनुमानजी चाहते हैं कि रात जल्दी से हो जाये तो मैं लंका में शीघ्रता से प्रवेश करुँ -
"पुर रखवारे देखि बहु , कपि मन कीन्ह विचार ।
अति लघु रुप धरौं ,निशि नगर करहु पैसार ॥"
लंका में श्रीरामजी नर-नाटक करते हुये कहते हैं कि सूर्य उदय न हो तो अच्छा है । मेरे भाई लक्ष्मन का कोई अहित नहीं होगा । लंका में श्रीरामजी रात चाहते हैं, श्रीहनुमानजी रात चाहते हैं , अयोध्या में श्री दशरथ जी भी रात्रि चाहते हैं -
""उदय करहु जनि रवि रघुकुल गुर , अवध विलोकि सूल होयहि उर "
रात में योगी जन साधना करते हैं । श्री गीताजी अध्याय 2 श्लोक 69 मे
"या निशा सर्व भूतानां तस्यां जाग्रति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भुतानि सा निशा पश्यतो मुने: ॥"
सम्पूर्ण प्राणियों को जो रात्रि के समान है , उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ जोगी जागता है । और जिस नाशवान सांसरिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं ,परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिये वह रात्रि के समान है । श्री हनुमान जी ने भी विभीषण जी को रात्रि में राम-नाम लेने पर ही पहचाना था । निशाचर भी रात्रि में जागते हैं । पर वे काम,क्रोध,लोभ ,मोह की पूर्ति के लिये जागते हैं । जो रात में सोते हैं और रामजी के बनना चाह्ते है सो गलत है । अयोध्यावासी श्रीरामजी के पीछे-पीछे जंगल को जाते हैं और कहते हैं -
"अवध तहाँ जहँ राम निवासू ,तँहई दिवस जँह भानु प्रकासु ॥"
कहते है ज़हाँ हमारे राम जिस जंगल में होगें वही पहाड़ हमारे लिये अयोध्या का सुख़ देगा परन्तु जब यहा सब भक्त जन तमसा नदी के किनारे गहरी नींद में सो गए तो श्री रामचन्द्रजी ने बताया कि रात मे सोने वाले को हमेशा हमेशा को प्राप्त नही हुँ सोते छोड चले गये परन्तु जो जाग रहे थे लक्ष्मण जी सुमन्तजी उनको साथ लेकर ही गये|इस लिये रात्रि भक्तों की साधना के लिये होती है-श्री दशरथ जी कहते है कि रात ही रात रहे|
"ह्रदय मनाव भोरु जनि होई,रामहि जाय कहे जनि कोई ॥"
श्री द्शरथ जी सूर्यदेव से याचना करते है क्योंकि बारह कला सूर्य में होने के कारण बारह "र" से प्रार्थना कर ,प्रत्येक कला को "र" समर्पण करते हैं । एक "र"को हमेशा अपने मन में रखते हैं । और क्या कहते है - बारह महिने होते हैं । आप बारह कला से रक्षा करने की कृपा करें !बारह महिने में छह ॠतु होती है ।
ग्रीष्म,वर्षा,शरद,शिशिर,हेमन्त और बसन्त । छह ॠतु हेतु छह बार नाम लेकर श्रीराम की रक्षा की प्रार्थना करते हैं । श्रीराम को आपकी शरण में सौंपकर-
" राम राम कहि,राम कहि , राम राम कहि राम ।
तनु परिहर रघुवर विरह , राऊ गये सुरधाम ॥ "
शेष अगले अंक में

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